मोदी के खास युवा नेता मनसुख मांडविया, CM रेस में सबसे आगे
हाल ही में देश के नए स्वास्थ्य मंत्री बने मनसुख मांडविया सीएम पद की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं। इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। 49 साल के राज्य सभा सदस्य मांडविया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्रों में शामिल हैं। उन्हें सीएम बनाकर बीजेपी युवा तुर्कों को आगे बढ़ाने के अपने दावे पर खरा उतरी सकती है। मांडविया अगर सीएम बनते हैं तो उसके पीछे जातीय समीकरण की भी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। वह गुजरात की राजनीति में अहम माने जाने वाले पटेल समुदाय से आते हैं। लेउवा पाटीदार नेता मांडविया 2002 में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे, जब वे पलिताना निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए। उन्होंने बीजेपी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) में शामिल होने से पहले, आरएसएस की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। सौराष्ट्र क्षेत्र से आने वाले मंडाविया 2016 से नरेंद्र मोदी सरकार में एक महत्वपूर्ण युवा चेहरा रहे हैं। उन्हें पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में 5 जुलाई, 2016 को सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाजरानी और रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया था। 1 जुलाई, 1972 को भावनगर जिले के हनोल गांव में एक किसान परिवार में जन्मे, मंडाविया पहली बार 2012 में राज्य सभा के लिए चुने गए और 2018 में दोबारा चुने गए। 2014 में वह बीजेपी के मेगा सदस्यता अभियान के प्रभारी भी बने, जिसके दौरान एक करोड़ लोग पार्टी में शामिल हुए। मांडविया पहले ऐसे सांसद हैं जो पिछले सात सालों से साइकिल से संसद आते हैं। केंद्रीय मंत्री के तौर पर उन्हें किफायती दरों पर 850 से अधिक औषधियां मुहैया कराने वाले 5,100 से अधिक जन औषधि केंद्र खोलने और हृदय के स्टेंट और घुटने के प्रतिरोपण की कीमत कम करने का श्रेय दिया जाता है। यूनीसेफ ने उन्हें 10 करोड़ सैनिटरी पैड बेचने के लिए जन औषधि केंद्रों की श्रृंखला का इस्तेमाल कर महिला माहवारी स्वच्छता में योगदान देने के लिए सम्मानित किया था।
कड़वा पटेल बिरादरी के मजबूत नेता हैं पुरुषोत्तम रुपाला
केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला का नाम भी सीएम उम्मीदवारों में शामिल है। 66 वर्षीय रुपाला गुजरात के उन नेताओं में से एक हैं जिनके सामने पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीति शुरू की। 1992 में जिस समय मोदी विद्यार्थी परिषद का संगठन देख रहे थे, तब रुपाला गुजरात बीजेपी में सचिव पद पर हुआ करते थे। केशुभाई पटेल और नरेंद्र मोदी के झगड़े के समय रुपाला केशुभाई खेमे के करीबी माने जाते थे। लेकिन 2002 में हवा का रुख भांपते हुए वह नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़े हो गए। 2006 में रुपाला प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भी बने। रुपाला सौराष्ट्र के इलाके में मजबूत कड़वा पटेल बिरादरी के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक माने जाते हैं। 2014 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात छोड़कर दिल्ली आ रहे थे तो गुजरात में उनके वारिस पर काफी तकरार चल रही थीं। उस समय पटेलों के तीन बड़े नेता आनंदीबेन, नितिन पटेल और पुरुषोत्तम रुपाला अपनी तरफ से जोर लगाए हुए थे। नितिन पटेल और पुरुषोत्तम रुपाला को इस मुकाबले में मायूस होना पड़ा। 2016 में रुपाला को राज्य सभा के जरिए सांसद बनाया गया। वह 2016 से मोदी कैबिनेट में बने हुए हैं।
हर बीजेपी सरकार में रहे मंत्री, पाटीदार नेता नितिन पटेल का दावा मजबूत
गुजरात सरकार में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले डेप्युटी सीएम नितिन पटेल भी नए मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं। पूर्व सीएम आनंदीबेन पटेल के बाद भी नितिन पटेल का दावा बहुत मजबूत था, लेकिन विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बना देने से उन्हें मायूसी हाथ लगी थी। 1995 में पहली बार विधायक का चुनाव लड़ने वाले नितिन पटेल पिछले 30 सालों से बीजेपी के सदस्य हैं। साथ ही राज्य में बीजेपी की हर सरकार का हिस्सा रह चुके हैं। पाटीदार समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नितिन पटेल को संभावित सीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। 65 वर्षीय नितिन पटेल राज्य सरकार में कई पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। साथ ही उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का विश्वास मत भी है। उत्तरी गुजरात से आने वाले नितिन कड़वा पटेल हैं। उनकी छवि जमीन से जुड़े नेता की है। शायद इसीलिए पटेल आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकार की ओर से बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी। नरेंद्र मोदी के केंद्र में जाने के बाद नितिन पटेल गुजरात में पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर सामने आए। लगातार मंत्री रहने वाले नितिन पटेल गुजरात दंगों के बाद चुनाव हार गए थे। बावजूद इसके पार्टी में उनका कद पहले जैसा ही रहा और कई अहम पदों पर वह बने रहे। 2016 में वह पहली बार उपमुख्यमंत्री बने।
ISO प्रमाणित इकलौते सांसद सीआर पाटिल, यूं बने आलाकमान के खास
गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष सीआर पाटिल भी सीएम प्रत्याशियों की रेस में शामिल हैं। पाटिल अपनी अनोखी कार्यशैली के चलते बीजेपी आलाकमान के पसंदीदा नेता बन चुके हैं। पाटिल 2019 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले सांसद हैं। उनका खासियत है कि वह पूरे पांच साल काम करते हैं और चुनाव के पहले बस दो दिन कैंपेन करते हैं। नवसारी सीट से पाटिल ने कांग्रेस प्रत्याशी को 6.89 लाख वोटों से हराया था। पाटिल अपने कामकाज में तकनीक का खूब इस्तेमाल करते हैं और क्षेत्र के लोगों से हमेशा संपर्क रहते हैं। वे पहले और एकमात्र सांसद हैं, जिनका ऑफिस 2015 में ही आइएसओ: 2009 से प्रमाणित है। यह प्रमाणपत्र उन्हें सरकारी सुविधाओं के बेहतर प्रबंधन और निगरानी के लिए दिया गया। खास बात ये है कि सीआर पाटिल मुख्यमंत्री पद के लिए जरूरी जातीय समीकरण में फिट नहीं बैठते हैं क्योंकि वह गैर पाटीदार नेता हैं। पाटिल का जन्म महाराष्ट्र के जलगांव में हुआ। उन्होंने आईटीआई, सूरत से टेक्निकल ट्रेनिंग हासिल की। अपनी खास कार्यप्रणाली के चलते वह पीएम नरेंद्र मोदी के खास नेताओं में शुमार हैं। वह दो बार अपना चुनाव 5 लाख से ज्यादा मतों से जीत चुके हैं। पीएम मोदी ने 2019 में अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इलेक्शन मैनेजमेंट की जिम्मेदारी पाटिल को ही सौंपी थी। 1989 में राजनीति में आने से पहले कृषि और कारोबार में सक्रिय रहे।