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कुशल एम चोकसी

भुलाए नहीं भूलता 20 साल पहले का वह दिन। हजारों लोग खत्म हो गए उस गुबार में, जो लिबर्टी स्ट्रीट पर मेरे पीछे बढ़ता चला आ रहा था। मैं पूरी ताकत से भाग रहा था। कुछ होश नहीं मुझे कि मेरी जान कैसे बची। 11 सितंबर को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसामा बिन लादेन के आतंकवादी संगठन अल-कायदा के हमले के महीनों बाद तक मुझे सपने आते रहे कि सिक्यॉरिटी वालों ने जो कुछ कहा था, उसे मानते हुए मैं नॉर्थ टावर में अंदर पीछे की ओर चला गया। कुछ ही देर में भीषण आवाज के साथ बिल्डिंग भहराकर गिरने लगी। और मैं वहां से जान बचाने के लिए पूरी ताकत से भागा। अचानक सपना टूट जाता था। मैं पसीना-पसीना हुआ रहता। हार्ट बीट बढ़ जाती। कुछ देर बाद मुझे अहसास होता था कि मैं तो अपने बिस्तर में हूं। 9/11 ने मेरे मन पर गहरे निशान छोड़ दिए थे। वे निशान इतने गहरे थे कि वर्षों बाद भी पीछा नहीं छोड़ते।

हाल में आदत के हिसाब से मैंने टीवी ऑन किया। एक न्यूज एंकर बता रही थीं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ‘एक युग का अंत’ है। काश, इतना आसान होता सब कुछ भुला पाना। मजबूत दिल वाले किसी आम न्यूयॉर्कर की तरह मैंने भी पूरी कोशिश की थी कि 9/11 से जुड़ी बातें दिल में ही दफन हो जाएं, लेकिन क्या ऐसा हो पाया? नहीं, मेरी तमाम कोशिशों के बाद भी उस घटना के निशान मेरे जहन में बने हुए हैं।

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तब जिंदगी बच जाने के लिए मैं शुक्रगुजार तो था, लेकिन दूसरी ओर विदेशी धरती पर एक वीराने ने मुझको घेर लिया। अंदर ऐसा खालीपन लगता, जैसा मुझे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। जिंदगी जब अचानक वार करती है तो जीवन के असल मकसद के बारे में सवाल उठने लगते हैं। मैंने भी खुद से पूछा। क्या मैं वाकई वह सब कर रहा हूं, जो मुझे करना चाहिए?

उस खालीपन और उसके साथ आई बेचैनी से उबरने के लिए मैंने अपना मन दूसरी चीजों में लगाने की कोशिश की। मैं दुनिया के कई हिस्सों में आने-जाने लगा। लैटिन अमेरिका गया और वहां एंडीज की पहाड़ियों पर चढ़ाई की। नीले कैरेबियाई सागर में गोते भी लगाए। अमेजन के जंगलों में घूमा तो प्रेयरी के विशाल मैदानों की छटा भी देखी। मकसद की तलाश में जो मैं निकला, तो वॉल स्ट्रीट पर अपना शानदार करियर भी छोड़ दिया। एक टॉप इनवेस्टमेंट बैंक से निकलकर मैंने एक छोटी सी स्टार्टअप जॉइन कर ली।

फिर भी हाल वही रहा। जब भी मैं किसी एयरपोर्ट पर सिक्यॉरिटी चेक के लिए अपने जूते उतारता, मन उस मंगलवार की मनहूस सुबह की ओर चला जाता। कहीं से किसी चीज के जलने की बू आती या तेज शोर होता तो मैं घबरा जाता। दिमाग में वही भीषण धमाका गूंजने लगता। उस दिन जो कुछ हुआ था, उससे मैं निकल नहीं पा रहा था। कुछ साफ नहीं था कि आगे जीवन किस राह पर जाएगा।

और फिर वह हुआ, जिसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। न्यूयॉर्क में एक आध्यात्मिक अनुभव ने मुझे जगा दिया। मुझे पता चला कि इस चक्र से बाहर निकलने का रास्ता तो मेरे पास है, मेरे दिल में है। मैंने ध्यान की क्रिया सीखी। जैसे-जैसे मैं इसकी प्रैक्टिस करता गया, बेचैनी घटने लगी, मन में शांति छाने लगी। हर चीज के लिए तर्क ढूंढने वाला दिमाग यह पता लगाने की कोशिश में था कि यह सब कैसे हो रहा है, लेकिन जो अहसास हो रहा था, वह सुखद था।

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जल्दी ही मैंने पाया कि उस पूरे दौरान मैं दुनिया को दरअसल अपने हिसाब से देख रहा था। यह कुछ वैसा ही था, जैसे ब्लू टिंट वाला चश्मा पहनकर सफेद कमीज ढूंढने की कोशिश की जाए। जब यह बात समझ में आ गई तो सोच भी बदल गई, बिना किसी प्रयास के। बिना किसी खास कोशिश के। अपनी सांसों के उतार-चढ़ाव की ताकत से मैंने अपने सिस्टम को दुरुस्त कर लिया। इसके बाद मेरे मन पर छाया जाला धीरे-धीरे हट गया।

मुझे यह अहसास भी हुआ कि मेरी थकान की वजह केवल यह नहीं थी कि मैं कई दिशाओं में कई चीजें बहुत तेजी से कर रहा था। या फिर सोच बदलने के लिए मैं बहुत ताकत लगा रहा था। शायद मैं अपने मकसद की तलाश गलत जगहों पर कर रहा था। जिंदगी का मकसद पाना तो अपने मन के भीतर की यात्रा है, इसे दूसरों के भरोसे हासिल नहीं किया जा सकता। मैं और मेरी पत्नी अब एक चॉकलेट कंपनी चलाते हैं। यह एक कुटीर उद्योग की तरह है, एक सामाजिक मकसद के साथ, जिसका ताना-बाना हमारी संस्कृति से जुड़ा है। इससे पहले हमारी एक स्टार्टअप नाकाम रही, दो दूसरी स्टार्टअप सफल रही। यह सब संभव हो सका, जब मैंने अपने दिल की आवाज सुनी।

20 साल पहले अमेरिका में अल-कायदा के हमले के बाद मेरे पांव तले की जमीन खिसक गई थी। जब ऐसा होता है तो अक्सर सोचने-समझने की ताकत हिल जाती है। लेकिन असल जादू तब होता है, जब खालीपन के अहसास से उबरें, पिछली चीजों पर नजर डालें, हकीकत को स्वीकार करें और चल पड़ें, एक नई मंजिल की ओर। उस आतंकवादी हमले से उबरने के लिए मैंने ऐसा ही किया और तब जाकर मुझे उस नई मंजिल का रास्ता दिखा।

(चोकसी की एक किताब भी आने वाली है ‘ऑन अ विंग एंड अ प्रेयर’)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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