मर्डर केस के एक आरोपी के खिलाफ 4 दशक पहले मुकदमा चला और उसे दोषी करार दिया गया। आरोपी का दावा है कि वह 1965 में पैदा हुआ था और घटना के वक्त वह नाबालिग था उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के सीतापुर के संबंधित अडिशनल सेशन जज से कहा है कि वह लड़के की उम्र के संबंध में जांच करें और दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के सामने रिपोर्ट पेश करें।
यह मामला यूपी के सीतापुर इलाके का है। याचिकाकर्ता आरोपी के खिलाफ दंगा, फसाद, हत्या और सबूत नष्ट करने का 1982 में सेशन कोर्ट में मुकदमा चला था। निचली अदालत ने मामले में आरोपी को दोषी करार दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट में याचिकार्ता ने दावा किया कि घटना के वक्त वह नाबालिग था और उसे जेजे एक्ट का लाभ मिलना चाहिए। जेजे बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा गया कि घटना के वक्त वह नाबालिग था। गौरतलब है कि जेजे एक्ट के तहत जुवेनाइल को जेल में नहीं रखा जाता बल्कि अधिकतम उसे सुधार गृह में तीन साल तक रखे जाने का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी सरकर की ओर से भी रिपोर्ट पेश की गई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर उसका जन्मदिन 12 फरवरी 1965 है और वह घटना के वक्त नाबालिग था। वहीं यूपी सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया कि आधार कार्ड में याचिकाकर्ता की उम्र एक जनवरी 1965 है। सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी तथ्य सामने आया है कि स्कूल रेकॉर्ड में याचिकाकर्ता ने जो जन्म की तारीख बताई है वह मौजूद नहीं है। साथ ही 1976 के खतौनी में याचिकाकर्ता की उम्र 14 साल दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि इस मामले में उचित होगा कि संबंधित सेशन जज से रिपोर्ट मांगी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित सेशन जज से कहा है कि वह याचिकाकर्ता की उम्र और घटना के वक्त उसकी उम्र के बारे में जांच कर दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करे।
प्रतीकात्मक तस्वीर