नई दिल्ली
पिछले कुछ वर्षों के दौरान दलित पॉलिटिक्स में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। नेतृत्व करने वाले कई चेहरे सामने आए। हिंदी भाषी राज्यों में ‘भीम आर्मी’ के जरिए चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पहचान बनाई। उन्होंने आजाद समाज पार्टी का गठन भी किया है। जिन पांच राज्यों में अगले छह महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से तीन राज्य- यूपी, पंजाब और उत्तराखंड ऐसे हैं, जिनमें दलित वोटर्स निर्णायक साबित होते हैं।
दलित वोटर्स का क्या रुझान है और आजाद समाज पार्टी की इन चुनावों में क्या भूमिका रहने वाली है, यह जानने के लिए एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बात की चंद्रशेखर आजाद से। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :
पिछले कुछ वर्षों के दौरान दलित पॉलिटिक्स में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। नेतृत्व करने वाले कई चेहरे सामने आए। हिंदी भाषी राज्यों में ‘भीम आर्मी’ के जरिए चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पहचान बनाई। उन्होंने आजाद समाज पार्टी का गठन भी किया है। जिन पांच राज्यों में अगले छह महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से तीन राज्य- यूपी, पंजाब और उत्तराखंड ऐसे हैं, जिनमें दलित वोटर्स निर्णायक साबित होते हैं।
दलित वोटर्स का क्या रुझान है और आजाद समाज पार्टी की इन चुनावों में क्या भूमिका रहने वाली है, यह जानने के लिए एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बात की चंद्रशेखर आजाद से। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :
- पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, चुनाव के वक्त इन राज्यों में आप किसके पाले में खड़े दिखेंगे?
हम किसी के पाले में नहीं खड़े होने वाले हैं। आजाद समाज पार्टी सभी पांच राज्यों में अपने उम्मीदवार उतारेगी। हां, मैं कांशीराम जी का चेला रहा हूं, आज भी उनके सिद्धांत मेरे आदर्श हैं। वह कहा करते थे- जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी। इस सिद्धांत के आधार पर समान विचार दलों के साथ अगर कोई गुंजाइश बनती है तो गठबंधन हो सकता है। - ओवैसी से आपकी पिछले दिनों मुलाकात हुई, कांग्रेस को लेकर कहा जाता है कि वह आपके संपर्क में है और अब खबर यह भी आ रही है कि अखिलेश यादव आपको साथ लेना चाहते हैं, आप किसके साथ जाना चाहेंगे?
ओवैसी साहब से मेरी जो मुलाकात हुई, वह कोई टेबल टॉक नहीं थी। वह एक टीवी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे और मुझे भी उस कार्यक्रम में बुलाया गया था। इस तरह की मुलाकात तो तमाम नेताओं के साथ हुआ करती है। रही बात गठबंधन की तो मैंने पहले ही कहा, मैं जिस नजरिये के साथ समाज के वंचित तबके की लड़ाई लड़ रहा हूं, उसके दायरे में अगर न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ समान विचार वाले दलों के गठबंधन की कोई गुंजाइश बनती है तो गठबंधन हो सकता है, उसमें कोई भी दल हो सकता है। किसी का नाम अभी तय नहीं है। - क्या बीजेपी के साथ भी गठबंधन की कोई गुंजाइश बनती है?
नहीं, क्योंकि बीजेपी की विचारधारा हमसे मेल नहीं खाती। वह राष्ट्रवाद के नाम पर छलावा करती है। वह बुनियादी मुद्दों की राजनीति नहीं करती। मैं अभी यूपी गया था, वहां 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में 20 हजार पद जो पिछड़ा वर्ग और एससी वर्ग के थे, उसे वहां की बीजेपी सरकार ने छल लिया है। - लेकिन 2014 के चुनाव से नया ट्रेंड देखने को मिला है कि अनुसूचित जाति वर्ग का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी को वोट कर रहा है। बीएसपी के कमजोर होने की, इसे एक वजह माना जाता है। इस बदलाव की क्या वजह आप देखते हैं?
बीजेपी प्रोपेगेंडा की राजनीति में माहिर है। उसे अपने झूठ तंत्र के जरिए यह स्थापित करने में कामयाबी मिल गई कि देश में हिंदू खतरे में है, अगर वह एकजुट नहीं हुआ तो मुसलमानों का कब्जा हो जाएगा। धर्म की आंधी के साथ जब बहुसंख्यक समाज बहा तो उसमें दलित भी बह गया, हालांकि उसमें गैर-जाटव ज्यादा थे। यहां चूक यह हुई कि आंबेडकर जी, कांशीराम जी के विचारों पर राजनीति करने वाली जो कॉडर बेस पार्टियां थीं, वे खुद बीजेपी के अजेंडे पर राजनीति करने लगीं। - अनुसूचित वर्ग का जो हिस्सा बीजेपी को वोट करने लगा है, उसको अपने साथ लाना क्या आपके लिए आसान होगा?
हवा के साथ जो बीजेपी में गया था, वह लौटने लगा है या यह समझ लीजिए कि लौट आया है। उसे समझ में आ गया कि सात साल में उसे क्या मिला, सिर्फ पीटा ही गया है। - 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की जो सबसे बड़े जनाधार वाली पार्टियां मानी जाती हैं, एसपी-बीएसपी, उन दोनों ने भी गठबंधन किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली?
इसमें कोई शक नहीं यह बहुत ही प्रभावशाली गठबंधन था। उसको कराने में मेरी भी कुछ न कुछ भूमिका थी, लेकिन यह रिजल्ट नहीं दे पाया। इसकी वजह जहां तक मैं समझ पाया हूं, वह यह है कि दोनों दलों के नेताओं के बीच तो गठबंधन हो गया था, लेकिन कार्यकर्ताओं और उनके वोटर्स के बीच नहीं हो सका। इसके लिए जो प्रयास किए जाने चाहिए थे, वे दोनों दलों के नेताओं की ओर से नहीं हुए। - मायावती जी के साथ आपने कई बार काम करने की इच्छा जताई, लेकिन वह आपका साथ लेने को तैयार नहीं हुईं, इसकी क्या वजह आप देखते हैं?
वजह तो जरूर कुछ न कुछ होगी, लेकिन वह तो बहन जी ही बता सकती हैं। जहां तक मेरा सवाल है वह मेरी सम्मानित थीं, हैं और रहेंगी। मैं उनके नेतृत्व में काम कर चुका हूं। - दलित समाज की गोलबंदी क्या मायावती को माइनस करके मुमकिन है?
मैंने कभी यह नहीं कहा कि मैं मायावती को माइनस कर रहा हूं या मैं उस पाले में नहीं रहूंगा, जिसमें वह होंगी। किसी को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि वह प्लस, माइनस कर सकता है। नेता समाज नहीं बनाते हैं बल्कि समाज नेता बनाता है। समाज जिसको चाहेगा, नेता बना देगा। - आपका क्या राजनीतिक लक्ष्य है?
वंचित समाज के लोगों को राजनीतिक ताकत देनी है। ताकत इस हद तक हो, जिसमें वह कानून बना सकते हों।