सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मौजूदा 1861 के पुलिस एक्ट पर सवाल उठाया गया है। कहा गया है कि हमारे पास ‘रूलर’ पुलिस है न कि पीपल्स फ्रेंडली पुलिस। कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि मॉडल पुलिस बिल बनाया जाए ताकि पुलिस जवाबदेह बने और रूल ऑफ लॉ की रक्षा हो सके और वह पीपल फ्रेंडली बन सके।
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार के होम मिनिस्ट्री व लॉ मिनिस्ट्री आदि को प्रतिवादी बनाया गया है। कहा गया है कि 84 के दंगे हुए, 1990 में कश्मीर में नरसंहार हुआ। साथ ही याचिका में पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा का भी उदाहरण दिया गया।
याचिका में कहा गया है कि पुलिस अपने आकाओं के कहे के मुताबिक काम करती है। पुलिस लोगों के लिए काम नहीं करती है। पुलिस रूल ऑफ लॉ की रक्षा नहीं कर पा रही है। साथ ही लोगों के जीवन और लिबर्टी के अधिकार और मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखने में विफल हो रही है।
याचिका के अनुसार, देखने में आता है कि पुलिस एफआईआर तक दर्ज नहीं करती है और कई बार वह राजनीतिक नेताओं की सहमति के बाद ही केस दर्ज करती है। धाराएं भी लगाने में उनकी दखल देखी जाती है। रूल ऑफ लॉ के लिए लोगों के लिबर्टी और लाइफ को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस का राजनीतिकरण बहुत बड़ा खतरा है। हमारे पास रूलर पुलिस है न कि पीपल पुलिस।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया कि रूल ऑफ लॉ संविधान का अभिन्न अंग है। कोर्ट में मुख्य सवाल यह उठाया गया है कि क्या 1861 का पुलिस एक्ट, रूल ऑफ लॉ, लोगों के जीवन और लिबर्टी के अधिकार को संरक्षित रखने मे विफल हो रहा है? क्या पुलिस एक्ट लोगों के सुझाव के हिसाब से बने? क्या पुलिस एक्ट में मनमाना अधिकार है राजनीतिक दखलअंजादी का? सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह जूडिशियल कमिशन बनाए और पुलिस एक्ट का परीक्षण करे। मॉ़डल पुलिस बिल बने ताकि पुलिसिंग सिस्टम पारदर्शी हो और पीपल फ्रेंडली हो और उनके प्रति जवाबदेह हो। लोगों के जीवन और लिबर्टी के अधिकार के साथ-साथ रूल ऑफ लॉ सुरक्षित हो।