सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के उस नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया जिसके तहत हरियाणा सरकार ने ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर में प्राथमिकता तय कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि राज्यों को ओबीसी में क्रीमीलेयर के लिए सब क्लासिफिकेशन का अधिकार नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि राज्य ओबीसी में क्रीमीलेयर सिर्फ आर्थिक आधार पर तय नहीं कर सकता। आर्थिक के साथ सामाजिक और अन्य आधार पर क्रीमीलेयर बनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हरियाणा सरकार क्रीमीलेयर को फिर से परिभाषित करते हुए नोटिफिकेशन जारी करे। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की ओर से 2016 में जारी नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया।
राज्य ने इस आधार पर तय किया पैमाना
हरियाणा सरकार ने जो नोटिफिकेशन जारी किया था, उसके तहत ओबीसी में छह लाख तक की सालाना आमदनी वाले शख्स को नॉन क्रीमीलेयर माना था। छह लाख से ज्यादा आमदनी वाले को क्रीमीलेयर करार देते हुए उन्हें रिजर्वेशन से वंचित किया गया था। साथ ही छह लाख तक की आमदनी में भी सब क्लासिफिकेशन किया गया था और तीन लाख तक की आमदनी वालों को प्राथमिकता देने की बात कही थी।
नया नोटिफिकेशन जारी करने के निर्देश
हरियाणा सरकार के नोटिफिकेशन में कहा गया था कि ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर का लाभ 6 लाख रुपये सालाना की आमदनी वालों को मिलेगा। उससे ज्यादा इनकम वाले क्रीमीलेयर माने जाएंगे। उसमें 3 लाख रुपये सालाना आमदनी वालों को प्राथमिकता श्रेणी में रखा गया। यानी 3 लाख रुपये तक की आमदनी वालों को एडमिशन से लेकर नौकरी में प्राथमिकता देने की बात कही गई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया। कहा कि वह नए सिरे तीन महीने के भीतर नोटिफिकेशन जारी करे।
17 अगस्त 2016 को जारी हुआ था नोटिफिकेशन
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि इस फैसले से उन नौकरियों और दाखिले पर फर्क नहीं पड़ेगा जो नोटिफिकेशन के तहत किए गए हैं। उसे डिस्टर्ब न किया जाए। हरियाणा सरकार ने 17 अगस्त 2016 को नोटिफिकेशन जारी किया था और ओबीसी में नॉन क्रीमीलेयर के लिए प्राथमिकता तय कर दी थी। तीन लाख तक की आमदनी वालों को प्राथमिकता दी गई थी।
हरियाणा सरकार के नोटिफिकेशन को हरियाणा के पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा व अन्य ने चुनौती दी थी। हालांकि, हरियाणा सरकार ने अपने नोटिफिकेशन को सही ठहराया था। कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से इंदिरा साहनी जजमेंट में दिए फैसले के अनुसार ही क्रीमीलेयर तय किया गया था। इसके लिए ओबीसी के सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में हर जिले में ब्यौरा लिया गया था।