अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा जमाने से पाकिस्तान उत्साहित है। इसे पाकिस्तान की जीत और भारत की हार के तौर पर देखा जा रहा है। आतंकियों को सुरक्षित पनाहगाह देने के लिए मशहूर मुल्क इसके मद्देनजर शरारत के मूड में आ सकता है। उसकी जमीन पर फल-फूल रहे आतंकवादी समूहों के क्षेत्र में नए सिरे से हमला करने की आशंका है। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी ने यह चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर में अपनी पहुंच बढ़ाने की जरूरत है। उसे लोगों को यह आश्वासन देने की आवश्यकता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा।
उन्होंने कहा कि भारत को तालिबान के भीतर गुटों के अलावा पंजशीर घाटी में तालिबान विरोधी कमांडर दिवंगत अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के समर्थन वाले पूर्व अफगान सरकारी बलों तक पहुंचने की जरूरत है। इनके साथ भारत के दोस्ताना संबंध हैं।
कश्मीरियों को दिलाना होगा भरोसा
चौधरी ने कहा, ‘हमें कश्मीरियों तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी। हमें उन्हें दोबारा भरोसा देना होगा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा।’ वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध का हिस्सा रहे जनरल शंकर रॉय चौधरी ने कहा, ‘हमें यह समझना होगा कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत को पाकिस्तान की जीत और भारत की हार के तौर पर देखा जा रहा है। हमें जैश-ए-मोहम्मद जैसे तत्वों के नए सिरे से हमलों के लिए अपने आप को संगठित करना होगा।’ वह बोले, ‘हमें यहां कट्टरपंथी तत्वों के समर्थन में पाकिस्तान के मंसूबों के लिए तैयार रहना होगा।’
अफगानियों को शरण देने के लिए तैयार रहना चाहिए
थिंक टैंक रिसर्च सेंटर फॉर ईस्टर्न एंड नॉर्थ-ईस्टर्न स्टडीज के प्रमुख जनरल रॉय चौधरी ने कहा कि अफगानिस्तान में भारत की भूमिका प्रशिक्षण, राहत सामग्री मुहैया कराने तथा सबसे महत्वपूर्ण सभी शरणार्थियों को पनाह देने पर केंद्रित होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘अफगानिस्तान के लोग अब भी हमारे मित्र हैं। हमें उन्हें शरण देने के लिए तैयार होना चाहिए।’
उन्होंने यह भी आगाह किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के अच्छे संबंध हैं। लेकिन, बांग्लादेश में विपक्षी ताकतें तालिबान के सत्ता में आने से फिर से सक्रिय होंगी और वे शायद इस मौके को हाथ से जाने न दें।