हाइलाइट्स
- केरल हाई कोर्ट ने कहा कि महिला को अपने गर्भ के बार में फैसला लेने की आजादी है और यह उससे छीनी नहीं जा सकती
- अदालत ने मानसिक रूप से आंशिक कमजोर महिला को 22 हफ्ते के गर्भ को भ्रूण में विकृति की वजह से गिराने की अनुमति दी
- कोर्ट ने कहा कि अगर बच्चे में विकृति आने का खतरा हो तो मां के गर्भपात कराने के अधिकार को अदालत भी मान्यता देती है
केरल हाई कोर्ट ने कहा कि महिला को अपने गर्भ के बार में फैसला लेने की आजादी है और यह उससे छीनी नहीं जा सकती। इसके साथ ही अदालत ने मानसिक रूप से आंशिक कमजोर महिला को 22 हफ्ते के गर्भ को भ्रूण में विकृति की वजह से उसे गिराने की अनुमति दे दी।
कोर्ट ने कहा कि अगर होने वाले बच्चे में विकृति आने का खतरा हो या उसके दिव्यांग होने की आशंका हो तो उस स्थिति में मां के गर्भपात कराने के अधिकार को अदालत भी मान्यता देती है।
मेडिकल टीम ने दी थी यह रिपोर्ट
इस मामले में महिला मामूली रूप से मानसिक कमजोर है। उसकी जांच करने वाली मेडिकल टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भ्रूण क्लिनफेल्टर सिंड्रोम (आनुवंशिकी स्थिति जिसमें होने वाले लड़के में अतिरिक्त एक्स क्रोमोसोम होता है) से ग्रस्त है। इस वजह से पैदा होने के बाद उमें कई जटिलताएं उत्पन्न होगी।
अदालत ने यह फैसला महिला और उसके पति की याचिका पर दिया, जिन्होंने मां को होने वाले संभावित खतरे के आधार पर 22 सप्ताह के गर्भ समापन की अनुमति देने का आग्रह किया था।
सांकेतिक तस्वीर