मिलिट्री के टॉप पदों पर प्रमोशन के लिए दशकों से चली आ रही पॉलिसी में बदलाव हो सकता है। प्रस्ताव है कि सेना, नौसेना और वायु सेना के कमांडर्स-इन-चीफ (C-in-C) का सेलेक्शन वरिष्ठता से नहीं, बल्कि मेरिट पर होना चाहिए। अगर प्रस्ताव पर अमल होता है तो मिलिट्री में लागू करीब चार दशक पुरानी नीति में बड़ा बदलाव होगा। इसका एक और बड़ा पहलू है। कुछ अधिकारियों को कहना है कि यह बेवजह राजनीतिक हस्तक्षेप को बढ़ावा देगा।
एक सूत्र ने बताया कि जल्द ही आर्मी, नेवी और एयर फोर्स की एक ट्राई-सर्विस कमेटी बनाई जा सकती है। यह प्रस्ताव का अध्ययन करेगी। साथ ही कमांडर्स-इन-चीफ के सेलेक्शन के लिए उपयुक्त मेरिट बेस्ड क्राइटेरिया पर सुझाव देगी।
नीति बदलने से क्या है डर?
सशस्त्र बलों के धड़े में इस प्रस्ताव पर आपत्ति है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘केवल मुट्ठीभर अधिकारी ही थ्री स्टार रैंक तक पहुंचते हैं। उनके करियर में हर चरण का मूल्यांकन करने के बाद ऐसा किया जाता है। ऐसे में जो पॉलिसी दशकों से अच्छी तरह से चली आ रही है, उसमें छेड़छाड़ करने की क्या जरूरत है। इस तथाकथित ‘डीप सेलेक्शन’ (गहराई से चुनाव) से टॉप रैंक का राजनीतिकरण होगा।’
पक्ष में क्या है दलील?
वहीं, तमाम इस प्रस्ताव के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि वरिष्ठता के बजाय मेरिट ही टॉप रैंक में प्रमोशन के लिए आधार होना चाहिए। यह बदलते वक्त की मांग है। इससे सेना की एफिशिएंसी बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह थल-जल-वायु सेना के एकीकरण के लिए बेहद जरूरी है। तीनों अब अलग-अलग खानों में रहकर काम नहीं कर सकते हैं।
अभी क्या है क्राइटेरिया?
अभी C-in-C लेवल में प्रमोशन के लिए अफसर की जन्मतिथि और करीब चार दशक पहले कमिशनिंग की तारीख को आधार बनाया जाता है। कुछ मामलों को छोड़ पिछली सरकारें इसी सिद्धांत पर नया मिलिट्री चीफ अपॉइंट करती रही हैं। हालांकि, एनडीए सरकार ने दिसंबर 2016 में जनरल बिपिन रावत को नियुक्त कर इस परंपरा को तोड़ा। रावत की नियुक्ति उनसे वरिष्ठ दो लेफ्टिनेंट जनरल के ऊपर हुई। फिर दिसंबर 2019 में जनरल रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया।