सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ प्रताड़ना भर से आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता है। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जब तक उकसावे के लिए ऐक्टिव रोल न हो तब तक सिर्फ प्रताड़ना के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आईपीसी की धारा-306 यानी आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में जिस पर आरोप है, उसका उकसावे की कार्रवाई में ऐक्टिव रोल होना चाहिए।
क्या था मामला
यह मामला मध्यप्रदेश का है। पुलिस के मुताबिक 10 सितंबर 2014 को फिरोज नामक शख्स का अपनी पत्नी से कथित तौर पर वैवाहिक झगड़ा हुआ था। पत्नी अपनी बेटी को लेकर मायके चली गई। वहां से मायके वालों ने पत्नी और बेटी को आने नहीं दिया इसी कारण फिरोज खान ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। उसने अपने सूइसाइडनोट में लिखा कि उसकी पत्नी और बेटी को आरोपियों ने नहीं भेजा। उसके साथ हुई प्रताड़ना के कारण वह आत्महत्या कर रहा है।
फिरोज के भाई ने इस मामले में पुलिस को शिकायत की और सूइसाइड नोट का हवाला देकर आरोपियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस करने की गुहार लगाई। पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। निचली अदालत में चार्जशीट के बाद आरोपियों के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए। इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के सामने आरोपियों ने अर्जी दाखिल की। हाई कोर्ट ने आरोपियों की अर्जी मंजूर कर ली। जिसके बाद इस मामले में मृतक के भाई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में मृतक के भाई की दलील थी कि हाई कोर्ट ने फैसले में गलती की है। मामले में 10 गवाहों के बयान हो चुके हैं। साथ ही मृतक के सूइसाइड नोट का हवाला दिया गया जिसके तहत कहा गया कि आरोपियोंं ने उसे प्रताड़ित किया था।
उकसावे के लिए ऐक्टिव रोल जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा-306 के प्रावधान के मुताबिक आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी के खिलाफ उकसाने के मामले में ऐक्टिव रोल होना चाहिए। या फिर उसकी ऐसी हरकत होनी चाहिए जिससे कि जाहिर हो कि उसने आत्महत्या के लिए सहूलियत प्रदान की है। उकसावे वाली कार्रवाई में आरोपी का ऐक्टिव रोल होना चाहिए।
आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में उकसावे के लिए बिना ऐक्टिव रोल और पॉजिटिव रोल के बिना सिर्फ प्रताड़ना भर से आत्महत्या के लिए उकसाने का केस नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाया जाना जरूरी है या ऐसी हरकत होनी जरूरी है जिससे ऐसी परिस्थिति बन जाए कि मरने वाले के पास आत्महत्या करने के सिवा कोई चारा न बचा हो। मौजूदा केस में प्रताड़ना का आरोप है। लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मटीरियल नहीं है ऐसे में हाई कोर्ट के फैसले में कोई खामी नहीं है और अर्जी खारिज की जाती है।