नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) ने शुक्रवार को वेदों और पुराणों का हवाला देते हुए कहा कि जो व्यक्ति तालाब, कुआं और झील का पानी प्रदूषित करता है वह नर्क में जाता है। ट्राइब्यूनल ने कहा कि पर्यावरण का संरक्षण पश्चिम का अनूठा विचार या कुछ ऐसी चीज नहीं है जो कुछ दशक पहले या कुछ सदी पहले आई हो।
एनजीटी ने कहा, ‘इसके बजाय, भारत में, हमारे पास कम से कम ऐसे लिखित ग्रंथ हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि प्रकृति और पर्यावरण को वाजिब सम्मान दिया गया है, उनके साथ श्रद्धापूर्वक तरीके से व्यवहार किया गया है और इस देश के लोगों ने पूजा है।’
ट्राइब्यूनल ने कहा, ‘हमारे वैदिक साहित्य यह प्रदर्शित करते हैं कि मानव शरीर को पंच तत्वों से निर्मित माना गया है जिनमें आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी शामिल हैं। प्रकृति ने इन तत्वों और जीवों के बीच एक संतुलन रखा है।’
एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा, ‘अनंतकाल या वैदिक या पूर्व वैदिक काल से हमने पाया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में साधु-संत, ऋषि-मुनि बहुत बड़े दूरदृष्टा रहे हैं। उन्होंने सृष्टि की रचना को वैज्ञानिक तरीके से समझाया। उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों का पूरी बुद्धिमत्ता के साथ रहस्योदघाटन किया।’
ट्राइब्यूनल ने कहा कि प्रकृति के करीब लोगों को लाने के लिए प्राचीन भारत में बुद्धिजीवियों ने इसे धार्मिक रूप दिया ताकि लोग प्रकृति के बारे में उपदेशों को आदेश के तौर पर लें और उसके संरक्षण के लिए हर कदम उठाएं। एनजीटी ने कहा कि वैदिक साहित्य में जल को बहुत उच्च सम्मान दिया गया है।
ट्राइब्यूनल ने कहा कि जल प्रदूषण को हतोत्साहित करने के लिए ‘हमने पदम पुराण में एक चेतावनी पाई है। इसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति तालाब, कुआं या झील के जल को प्रदूषित करेगा वह नर्क का भागी होगा। छांदोग्य उपनिषद में कहा गया है कि जल से पौधे पैदा होते हैं जिनसे भोजन पैदा होता है।’
एनजीटी ने ऋग्वेद का हवाला देते हुए कहा कि यह निर्देश देता है कि वनों को नष्ट नहीं करना चाहिए। ट्राइब्यूनल अधिकरण ने बेंगलुरू में गोदरेज प्रापर्टीज लिमिटेड और वंडर प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट प्रा. लि. की बहुमंजिला लग्जरी परियोजना को मिली पर्यावरण मंजूरी रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। साथ ही, इन्हें फौरन ध्वस्त करने का निर्देश भी दिया।