उत्तराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव खेला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड के सपूत और हिमालय के रक्षक कहे जाने वाले पर्यावरणविद दिवंगत सुंदरलाल बहुगुणा को भारत रत्न देने की मांग की है। दिल्ली विधानसभा ने गुरुवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से बहुगुणा को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजे जाने का अनुरोध किया। दरअसल सुंदरलाल बहुगुणा का नाम उत्तराखंड में बड़े अदब के साथ लिया जाता है। उन्होंने चिपको आंदोलन समेत कई बड़े आंदोलन किए और अपना पूरा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया। ऐसे में आम आदमी पार्टी सुंदर लाल बहुगुणा के नाम के सहारे अपनी चुनावी नैय्या पार लगाने की तैयारी में है।
उत्तराखंड में मिल रहे फीडबैक से ‘आप’ गदगद
दरअसल आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर पूरी जी-जान से मेहनत कर रही है। प्रदेश में 300 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा करने के साथ ही अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड में पानी और जवानी(युवा) को बचाने का ऐलान किया है। इसके लिए आप पार्टी प्रदेश में हर बड़े-छोटे स्तर पर आंदोलन चला रही है। इसके साथ ही जन-जन की भागीदारी के लिए हस्ताक्षर अभियान भी चला रही है। इसमें लोगों का रुझान देखकर दिल्ली सरकार की बांछे खिल गई हैं।
बीजेपी के खिलाफ ‘आप’ से उम्मीदें
राजनीतिक जानकारों की माने तो उत्तराखंड में बीजेपी के खिलाफ चुनौती देने के लिए कांग्रेस नाकाफी है। ऐसे में वहां आम आदमी की धमक और लोगों की पार्टी के प्रति बढ़ती दिलचस्पी से दिल्ली सरकार गदगद है। ऐसे में आम आदमी पार्टी जहां कर्नल अजय कोठियाल को उत्तराखंड में पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा बनाने की तैयारी कर रही है। वहीं पहाड़ से जुड़े किसी मुद्दे को छोड़ना भी नहीं चाहती। इसी क्रम में गुरुवार को दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने पर्यावरणविद दिवंगत सुंदरलाल बहुगुणा को भारत रत्न देने की मांग की है। आइए उनके बारे में कुछ खास बातें जानते हैं…
कौन थे सुंदर लाल बहुगुणा
सुंदर लाल बहुगुणा महात्मा गांधी के पक्के अनुयायी थे। बहुगुणा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य तय कर लिया और वह पर्यावरण की सुरक्षा था। उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को हुआ था। उत्तराखंड के टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया। दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था। सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के रास्ते से समस्याओं का समाधान करना है।
हरिजनों के अधिकार के लिए भी किया आंदोलन
कहा जाता है कि 1956 में जब सुंदरलाल बहुगुणा की शादी हुई तो उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया। 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों के जाने के अधिकार के लिए भी आंदोलन किया। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ। उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।
पहाड़ पर पड़ों की कटाई के खिलाफ शुरू चिपको आंदोलन
पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए। 1980 की शुरुआत में सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।
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टिहरी बांध को लेकर भी किया था आंदोलन
सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं। अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा।