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नई दिल्ली
” पंजाब का सबसे बड़ा किसान संगठन है। इसके प्रमुख जोगिंदर सिंह उगराहां संगरूर जिले के ‘उगराहां’ गांव के रहने वाले हैं। इसलिए उन्होंने ‘भारतीय किसान यूनियन’ के साथ ‘उगराहां’ जोड़ा। इनके संगठन में महिलाओं की बहुत बड़ी भागीदारी है। किसान आंदोलन के मसले पर
जोगिंदर सिंह उगराहां से सैयद परवेज ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :

  1. दिल्ली में किसानों का धरना चल ही रहा है। ऐसे में मुजफ्फरनगर में जो किसान-मजदूर महापंचायत हुई, वह क्या है?5 सितंबर को मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में जो किसान मजदूर महापंचायत हुई, उसके माध्यम से हम लोगों के बीच केंद्र सरकार की कॉरपोरेट-परस्ती को उजागर करना चाहते थे। तीनों नए कृषि कानून किसान विरोधी ही नहीं हैं, वे असंवैधानिक भी हैं। उन्हें सिर्फ कॉरपोरेट हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस महापंचायत के जरिए हम किसान आंदोलन को भारत के गांव-गांव में ले जाएंगे। यहां हमने दोबारा तीन किसान विरोधी कृषि कानून को निरस्त करने और एमएसपी की कानूनी गारंटी देने की मांग को लोगों के सामने रखा। इस महापंचायत में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और देश के कई राज्यों से लाखों किसान एक मंच पर आए। इस महापंचायत में महिला एवं युवा किसानों की भारी संख्या दिखी है।
  2. 27 सितंबर को आप लोग भारत बंद कर रहे हैं। पहले भी आपने भारत बंद किया है, अब इस वाले में नया क्या है?पहले बंद का आह्वान राज्य स्तर पर था। अब हम पूरे देश में किसान आंदोलन का प्रभाव दिखाना चाहते हैं। यह सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रही है। बड़े पैमाने पर युवा बेरोजगार हैं। महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, चाहे वह रसोई गैस हो, पेट्रोल हो, खाद्य पदार्थों के दाम हों, सब बढ़े हैं। छोटे दुकानदार, छोटे कारखाने खस्ताहाल हैं। काश्तकारी बर्बाद हुई है।
  3. किसान-मजदूर महापंचायत ने मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की शुरुआत की है। यह क्या है?मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की शुरुआत आगामी चुनावों के मद्देनजर बीजेपी को सबक सिखाने के लिए की गई है। हम चुनावों में बीजेपी को हराना चाहते हैं। हम बताना चाहते हैं कि यूपी सरकार ने 86 लाख किसानों की कर्ज माफी का वादा किया था, जबकि 45 लाख किसानों का भी कर्ज माफ नहीं हुआ। केंद्र सरकार की एजेंसी सीएसीपी ने पाया है कि वर्ष 2017 में गन्ना की लागत प्रति क्विंटल 383 रुपये थी, लेकिन किसानों को 325 रुपये क्विंटल का भुगतान किया गया। गन्ना मिलों पर किसानों का 8,700 करोड़ रुपया बकाया है। उत्तर प्रदेश में फसल बीमा का भुगतान वर्ष 2016-17 में 72 लाख किसानों को किया गया, वहीं 2019-20 में 47 लाख किसान को किया गया, जिसमें फसल बीमा कंपनियों को 2,508 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है।
  4. सरकार लगातार एमएसपी बढ़ा रही है, फिर भी किसानों का अविश्वास क्यों बना हुआ है?एमएसपी बढ़ाने का नया शिगूफा छोड़कर सरकार किसानों की हमदर्दी जीतने की बेवजह की कोशिश कर रही है। ये उसी तरह से है कि जैसे किसानों के खाते में कुछ रुपये डाल दिए। ये सिर्फ किसानों को दी गई रिश्वत है, जो सरकार अपने प्रचार के लिए कर रही है। नई एमएसपी सिर्फ काले कृषि कानूनों से ध्यान हटाने और किसानों की इस मांग को झूठा करने लिए आई है कि एमएसपी पर कानून बने। जब ये बाजार खोल रहे हैं तो बिना कानून के एमएसपी क्या करेगी? और यह जो नई एमएसपी आई भी है, यह संयुक्त किसान मोर्चे के दबाव में आई है। अगर किसान आंदोलन न चल रहा होता, तो यह इस बार एमएसपी भी ना देते।
  5. छोटी जोत वाले किसान आप लोगों से क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं, और शहरी मध्यम वर्ग भी आपसे अभी तक दूर ही है?छोटे किसानों के आंदोलन से न जुड़ने की बात गलत है। यह केवल भ्रम फैलाया गया है। हमारे साथ अधिकांश आंदोलनकारी तो छोटी जोत वाले किसान ही हैं। हमारे संगठन में दो लाख किसान परिवार छोटी जोत वाले हैं। शहरी मध्यम वर्ग भी हमारे साथ है। जब हम आंदोलन में बंद का आह्वान करते हैं तो ज्यादातर कारोबारी अपनी दुकानें बंद रखते हैं।
  6. करनाल में किसानों पर लाठी चार्ज हुआ, लेकिन सरकार ने एसडीएम का तबादला तो कर ही दिया है। फिर भी आप वहां आंदोलन कर रहे हैं?देखिए, तबादला कोई हल नहीं है। जब एक पढ़ा-लिखा जिम्मेदार अधिकारी तो क्या उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए? कोई व्यक्ति इन नेताओं को कुछ बोल दे, तो उसे जेल में ठूंस दिया जाता है। ऐसे में किसानों के ‘सिर फोड़ने’ का आदेश देने वाले अधिकारी को क्या सजा नही मिलनी चाहिए?
  7. जो किसान आंदोलन में मरे हैं, उनके परिजनों का क्या हाल है? किसान मोर्चा ने उनके लिए कुछ किया?संयुक्त किसान मोर्चा के पास कुछ फंडिंग तो है नहीं। पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने इन किसानों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये दिए हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी आर्थिक मदद नहीं की है।
  8. अगर सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती, तो यह किसान आंदोलन ऐसे ही चलता रहेगा?आंदोलन करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई चारा नहीं है। जब यह कानून लागू हो जाएगा, हम तो वैसे ही मर जाएंगे। हमारा रोजगार, हमारी खेती, हमारी जमीन चली जाएगी। तब हम लोगों को क्या जवाब देंगे? यह आंदोलन तब तक चलता रहेगा, जब-तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर देती।



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